हम तो बचपन में भी अकेले थे

हम तो बचपन में भी अकेले थे
सिर्फ़ दिल की गली में खेले थे

एक तरफ़ मोर्चे थे पलकों के
एक तरफ़ आंसूओं के रेले थे

थी सजी हसरतें दूकानों पर
ज़िंदगी के अजीब मेले थे

आज ज़हनों दिल भुखे मरते हैं
उन दिनों फ़ाके भी हम ने झेले हैं

खुदकशी क्या ग़मों हल बनती
मौत के अपने भी सौ झमेले हैं
जावेद अख्तर

लगता नहीं है जी मेरा उजडे दयार में

लगता नहीं है जी मेरा उजडे दयार में
किस की बनी है आलम-ए-नापायेदार में

कह दो इन हसरतों से कही और जा बसे
इतनी जगह कहां हैं दिल-ए-दागदार में

उम्र-ए-दराज़ मांग कर लाये थे चार दिन
दो आरज़ू में कट गये दो इन्तज़ार में

कितना है बद नसीब "ज़फ़र" दफ़्न के लिये
दो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए- यार में
बहादुरशहा ज़फ़र

पत्थर के ख़ुदा वहां भी पाये

पत्थर के ख़ुदा वहां भी पाये
हम चांद से आज लौट आये

दिवारें तो हर तरफ खडी हैं
क्या हो गया मेहरबां साये

जंगल की हवायें आ रही हैं
कागज़ का ये शहर उड ना जाये

सहरा सहरा लहू के खेमे
फिर प्यासे लब-ए-फ़ुरात आये.
क़ैफ़ी आज़मी

तू कही भी रहे सर पर तेरे इल्ज़ाम तो है

तू कही भी रहे सर पर तेरे इल्ज़ाम तो है
तेरे हाथों की लकिरों में मेरा नाम तो है

मुझको तू अपना बना या न बना तेरी खुशी
तू ज़माने में मेरे नाम से बदनाम तो है

मेरे हिस्से में कोई ज़ाम ना आया ना सही
तेरी महफ़िल में मेरे नाम कोई शाम तो है

देखकर लोग मुझे नाम तेरा लेते है
इसपे मैं खुश हूं मोहब्बत का ये अंजाम तो है

वो सितमगर ही सही देखके उसको साबिर
शुक्र है इस दिल-ए-बीमार को आराम तो है

जब किसी से

जब किसी से कोई गिला रखना
सामने अपने आईना रखना

यूं उजालों से वास्ता रखना
शमा के पास ही हवा रखना

घर की तामिर चाहे जैसी हो
इसमें रोने की कुछ जगह रखना

मिलना जुलना जहा ज़रूरी हो
मिलने ज़ुलने का हौसला रखना

निदा फ़ाज़ली.

मुझे फिर वही याद

मुझे फिर वही याद आने लगे है
जिन्हे भुलाने में ज़माने लगे है

सुना है हमे वो भुलाने लगे है
तो क्या हम उन्हे याद आने लगे है?

ये कहना है उनसे मोहब्बत है मुझको
ये कहने में उनसे ज़माने लगे है

क़यामत यकिनन क़रीब आ गई है
'ख़ुमार' अब तो मस्जिद में जाने लगे है

ख़ुमार बाराबंकवी.

अपने होठों पर सजाना चाहता हूं

अपने होठों पर सजाना चाहता हूं
आ तुझे मैं गुनगुनाना चाहता हूं

कोई आसू तेरे दामन पर गिराकर
बूंद को मोती बनाना चाहता हूं

थक गया मैं करते करते याद तुझको
अब तुझे मैं याद आना चाहता हूं

छा रहा हैं सारी बस्ती में अंधेरा
रोशनी को घर जलाना चाहता हूं

आखरी हिचकी तेरे शानों पे आये
मौत भी मैं शायराना चाहता हूं

कतील शिफ़ाई.

पत्थर सुलग रहे थे कोई नक्श-ए-पा न था

पत्थर सुलग रहे थे कोई नक्श-ए-पा न था
हम उस तरफ़ चले थे जिधर रास्ता न था

परछाईयों के शहर की तनहाईयां न पुछ
अपना शरीक-ए-ग़म कोई अपने सिवा न था

यूं देखती हैं गुमशुदा लम्हों के मोड से
इस जिंदगी से जैसे कोई वास्ता न था

चेहरों पे जम गई थी ख़यालों की उलझनें
लफ़्जों की जुस्तजु में कोई बोलता न था

मुमताज राशीद.

दुनिया जिसे कहते हैं

दुनिया जिसे कहते हैं जादू का ख़िलौना हैं
मिल जाये तो मिट्टी हैं खो जाये तो सोना है

अच्छा सा कोई मौसम तनहा सा कोई आलम
हर वक़्त आये रोना तो बेकार का रोना हैं

बरसात का बादल तो दिवाना हैं क्या जाने
किस राह से बचना हैं किस छत को भिगौना हैं

ग़म हो कि ख़ुशी दोनो कुछ देर के साथी हैं
फिर रास्ता ही रास्ता हैं हंसना हैं रोना हैं
निदा फ़ाज़ली

दिन कुछ ऐसे गुजारता हैं कोई

दिन कुछ ऐसे गुजारता हैं कोई
जैसे एहसान उतारता है कोई

दिल में कुछ यूं संभालता हैं ग़म
जैसे जेवर संभालता हैं कोई

आईना देखकर तसल्ली हुई
हम को इस घर में पहचानता हैं कोई

दूर से गुंजते हैं सन्नाटे
जैसे हम को पुकारता है कोई
गुलज़ार

बदला ना अपने आपको

बदला ना अपने आपको जो थे वही रहे
मिलते रहे सभी से मगर अज़नबी रहे

दुनिया ना जीत पाओ तो हारो ना ख़ुद को तुम
थोडी बहुत तो ज़हान में नाराज़गी रहे

अपनी तरहा सभी को किसी की तलाश थी
हम जिसके भी क़रीब रहे दूर ही रहे

गुज़रो जो बाग़ से तो दुआ मांगते चलो
जिसमें खिले है फूल वो डाली हरी रहे
निदा फ़ाज़ली

कल चौदवी की रात थी

कल चौदवी की रात थी शब भर रहा चर्चा तेरा
कुछ ने कहा ये चांद है कुछ ने कहा चेहरा तेरा

हम भी वही मौजुद थे हम से भी सब पूछा किये
हम हंस दिये, हम चुप रहे,मंजूर था पर्दा तेरा

इस शहर में किससे मिले, हम से तो छूटी महफ़िले
हर शख्स तेरा नाम ले,हर शख्स दिवाना तेरा

कुचे को तेरे छोडकर जोगी ही बन जाये मगर
ज़ंगल तेरे, परबत तेरे,बस्ती तेरी,चेहरा तेरा

बेदर्द सुनी हो तो चल, कहता है क्या अच्छी गज़ल
आशिक़ तेरा, रूसवा तेरा,शायर तेरा,इंशा तेरा
इब्ने इंशा .

दुनिया के हादसों से तुने मुझे बचा के

दुनिया के हादसों से तुने मुझे बचा के
बेमौत मार डाला एहसां जता जता के.

तेरा चमकते सूरज एहसान मैं न लूंगा
कर लूंगा मैं उजाला खुद अपना घर जला के.

मैं टूट भी गया तो मुझमें चमक रहेगी
आईना पत्थरों से कहता है मुस्कुरा के.

तुझसे बिछड के आलम में हम जी नही सकेंगे
देखो दगा ना देना अपना मुझे बना के.

गम का खज़ाना तेरा भी है, मेरा भी

गम का खज़ाना तेरा भी है, मेरा भी
ये नज़राना तेरा भी है, मेरा भी

अपने गम को गीत बनाकर गा लेना
राग पुराना तेरा भी है, मेरा भी

शहर में गलीयों गलीयों जिसका चर्चा है
वो अफ़साना तेरा भी है, मेरा भी

तू मुझको और मैं तुझको समझाये क्या
दिल दिवाना तेरा भी है, मेरा भी

मैखाने की बात न कर मुझसे वाईज़
आना जाना तेरा भी है, मेरा भी

शाहिद कबीर.

तेरा चेहरा कितना सुहाना लगता हैं

तेरा चेहरा कितना सुहाना लगता हैं
तेरे आगे चांद पुराना लगता हैं

तिरछे तिरछे तीर नजर के चलते हैं
सीधा सीधा दिल पे निशाना लगता हैं

आग का क्या हैं पल दो पल में लगती हैं
बुझते बुझते एक ज़माना लगता हैं

सच तो ये हैं फूल का दिल भी छल्ली हैं
हसता चेहरा एक बहाना लगता हैं

कैफ़ भोपाली

दिल के दीवारों दर पे

दिल के दीवारों दर पे क्या देखा
बस तेरा नाम ही लिखा देखा

तेरी आखों में हमने क्या देखा
कभी कातिल कभी खुदा देखा

अपनी सुरत लगी पराई सी
जब कभी हमने आईना देखा

हाय अंदाज तेरे रूकने का
वक्त को भी रूका रूका देखा

तेरे जाने में और आने में
हमने सदियों का फ़ासला देखा

फिर ना आया खयाल जन्नत का
जब तेरे घर का रास्ता देखा

सुदर्शन फ़ाकिर

मैं होश में था

मैं होश में था तो फिर उसपे मर गया कैसे
ये जहर मेरे लहू में उतर गया कैसे

कुछ उसके दिल में लगावट जरूर थी वरना
वो मेरा हाथ दबाकर गुजर गया कैसे

जरूर उसके तसव्वुर की राहत होगी
नशे में था तो मैं अपने ही घर गया कैसे

जिसे भुलाये कई साल हो गये कलीम
मैं आज उसकी गली से गुजर गया कैसे

कलीम कंधपुरी

कितनी पलकों की नमी मांगके लाई होगी

कितनी पलकों की नमी मांगके लाई होगी
प्यास तब फूल की शबनम ने बुझाई होगी

इक सितारा जो गिरा टूंट के उंचाई से
किसी जर्रे की हंसी उसने उडाई होगी

आंधिया हैं के मचलती है,चली आती है
किसी मुफ़लीस ने कही शम्मा जलाई होगी

मैनें कुछ तुमसे कहा हो तो जबां जल जाये
किसी दुश्मन ने ये अफ़वाह उडाई होगी

हम तो आहट के भरोसे पे सहर तक पहुंचे
रातभर आपको भी नींद ना आई होगी

जब कभी तेरा नाम लेते है

जब कभी तेरा नाम लेते है
दिल से हम इंतिकाम लेते है

मेरे बरबादियों के अफ़साने
मेरे यारों के नाम लेते है

बस यही एक जुल्म है अपना
हम मोहब्बत से काम लेते है

हर कदम पर गिरे मगर सिखा
कैसे गिरतों को थाम लेते है

हम भटककर जुनूं की राहों मे
अक्ल से इंतिकाम लेते है
सरदार अंजुम

पूरा दुख और आधा चांद

पूरा दुख और आधा चांद
हिज्र की शब और ऐसा चांद

इतने घने बादल के पीछे
कितना तनहा होगा चांद

मेरी करवट पर जाग उठे
नींद का कितना कच्चा चांद

सहरा सहरा भटक रहा है
अपने इश्क मे सच्चा चांद

रात के शायद एक बजे है
सोता होगा मेरा चांद

परवीन शाकिर

जिंदगी से बडी सजा ही नहीं

जिंदगी से बडी सजा ही नहीं
और क्या जुल्म है पता ही नहीं

इतने हिस्सों में बंट गया हूं मैं
मेरे हिस्से में कुछ बचा ही नहीं

सच घटे या बढे तो सच ना रहे
झूठ की तो कोई इम्तिहां ही नहीं

जड दो चांदी में चाहे सोने में
आईना झूठ बोलता ही नहीं

कृष्णबिहारी नूर.

झूम ले हस बोल ले

झूम ले हस बोल ले प्यारी अगर है जिंदगी
सांस के बस एक झोके का सफ़र है जिंदगी

देर ही बनते बिगडते कुछ इसे लगती नही
फूल के दिवार पर शबनम का घर है जिंदगी

अजनबी हालात से भी हंसके मिलना चाहिये
हर कदम पर मुडने वाली रहगुजर है जिंदगी

जिंदगी मे जो भी करना चाहता है कर गुजर
क्या खबर बरसो की है या लम्हाभर है जिंदगी

तुम सरे आम

तुम सरे आम मुलाकात से डरते क्यो हो
इश्क करते हो तो हालात से डरते क्यो हो

ये बताओ तो जरा मेरा खयाल आते ही
दिन से घबराते हो तुम रात से डरते क्यो हो

तुम तो कहते हो तुम्हे मुझसे मोहब्बत ही नही
फिर जुदाई के खयालात से डरते क्यो हो

मुझसे खुद आके लिपट जाना संभलकर हटना
तेज होती हुई बरसात से डरते क्यो हो

जमीर काजमी.

कोई पत्ता हिले

कोई पत्ता हिले हवा तो चले
कौन अपना है ये पता तो

चले तू सितम से न हाथ अभी
और कुछ दिन ये सिलसिला तो चले

मंजिले खुद करीब आयेंगी
ये अजिजानो का काफ़िला तो चले

शहर हो गाव हो या हो घर अपना
आबुदाना ही उठ गया तो चले

हर किसी से मिला करो ए जफ़र
कौन कैसा है कुछ पता तो चले

जफ़र अली.

घर से निकले

घर से निकले थे हौसला करके
लौट आये खुदा खुदा करके

दर्द दिलका लगे वफ़ा करके
हमने देखा है तजुरबा करके

जिंदगी तो कभी नही आई
मौत आई जरा जरा करके

लोग सुनते रहे दिवार की बात
हम चले दिल को रहरूमा करके

किसने पाया सुकून दुनिया मे
जिन्दगानी का सामना करके

राजेश रेड्डी.

गजल की दुनिया में

मुस्कुराकर मिला करो हमसे
कुछ कहा और सुना करो हमसे

बात करने से बात बढती है
रोज बाते किया करो हमसे

दुश्मनी से मिलेगा क्या तुमको
दोस्त बनकर रहा करो हमसे