पत्थर के ख़ुदा वहां भी पाये

पत्थर के ख़ुदा वहां भी पाये
हम चांद से आज लौट आये

दिवारें तो हर तरफ खडी हैं
क्या हो गया मेहरबां साये

जंगल की हवायें आ रही हैं
कागज़ का ये शहर उड ना जाये

सहरा सहरा लहू के खेमे
फिर प्यासे लब-ए-फ़ुरात आये.
क़ैफ़ी आज़मी

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