हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते

हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते
वक़्त की शाख़ से लम्हें नहीं तोड़ा करते

जिस की आवाज़ में सिलवट हो निगाहों में शिकन
ऐसी तस्वीर के टुकड़े नहीं जोड़ा करते

शहद जीने का मिला करता है थोड़ा थोड़ा
जाने वालों के लिये दिल नहीं थोड़ा करते

तूने आवाज़ नहीं दी कभी मुड़कर वरना
हम कई सदियाँ तुझे घूम के देखा करते

लग के साहिल से जो बहता है उसे बहने दो
ऐसी दरिया का कभी रुख़ नहीं मोड़ा करते

गुलज़ार

ख़याल-ओ-ख़्वाब हुई हैं मुहब्बतें कैसी

ख़याल-ओ-ख़्वाब हुई हैं मुहब्बतें कैसी
लहू में नाच रही हैं ये वहशतें कैसी

न शब को चांद हैं अच्छा न दिन को मेहर अच्छा
ये हम पे बीत रही हैं क़यामतें कैसी

अज़ाब जीन का तबस्सुम सवाब जिनकी निगाह
खिंची हुई हैं पस-ए-जानां सूरतें कैसी

हवा के दोश पे रक्खे हुए चिराग़ हैं हम
जो बुझ गये तो हवा से शिकायतें कैसी

जो बेख़बर कोई गुज़रा तो ये सदा दी है
मैं संग-ए-राह हू मुझ पर इनायतें कैसी

ओबैदुल्लाह अलीम