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हम उन्हें वो हमें भुला बैठे


हम उन्हें वो हमें भुला बैठे
दो गुनहगार ज़हर खा बैठे|

हाल--ग़म कह-कह के ग़म बढ़ा बैठे
तीर मारे थे तीर खा बैठे|

आंधियो जाओ अब आराम करो
हम ख़ुद अपना दिया बुझा बैठे|

जी तो हल्का हुआ मगर यारो
रो के हम लुत्फ़--गम बढ़ा बैठे|

बेसहारों का हौसला ही क्या
घर में घबराए दर पे बैठे|

जब से बिछड़े वो मुस्कुराए हम
सब ने छेड़ा तो लब हिला बैठे|

उठ के इक बेवफ़ा ने दे दी जान
रह गए सारे बावफ़ा बैठे|

हश्र का दिन है अभी दूर 'ख़ुमार'
आप क्यों जाहिदों में जा बैठे|

ख़ुमार बाराबंकवी
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हुस्न जब मेहेरबां हो तो क्या कीजिये

हुस्न जब मेहेरबां हो तो क्या कीजिये
इश्क़ की मग्फिरत की दुआ कीजिये

इस सलीक़े से उन से गिला कीजिये
जब गिला कीजिये हंस दिया कीजिये

दूसरों पे अगर तबसीरा कीजिये
सामने आईना रख लिया कीजिये

आप सुख से हैं तर्क-ए-त'अल्लुक़ के बाद
इतनी जल्दी ना ये फैसला कीजिये

कोई धोखा न खा जाये मेरी तरह
ऐसे खुल के न सबसे मिला कीजिये

अक़्ल-ओ-दिल अपनी अपनी कहें जब खुमार
अक़्ल की सुनीये दिल का कहा कीजिये

ख़ुमार बाराबंकवी.

मुझे फिर वही याद

मुझे फिर वही याद आने लगे है
जिन्हे भुलाने में ज़माने लगे है

सुना है हमे वो भुलाने लगे है
तो क्या हम उन्हे याद आने लगे है?

ये कहना है उनसे मोहब्बत है मुझको
ये कहने में उनसे ज़माने लगे है

क़यामत यकिनन क़रीब आ गई है
'ख़ुमार' अब तो मस्जिद में जाने लगे है

ख़ुमार बाराबंकवी.