दर्द अपनाता है पराये कौन
कौन सुनता है और सुनाये कौन
कौन दोहराये वो पुरानी बात
ग़म अभी सोया है जगाये कौन
वो जो अपने है क्या वो अपने है
कौन दुख झेले आज़माये कौन
अब सुकूं है तो भूलने में है
लेकीन उस शख़्स को भुलाये कौन
आज फिर दिल है कुछ उदास उदास
देखिये आज याद आये कौन
जावेद अख़्तर.
उर्दु साहित्य में ग़ज़लों का अपना एक अलग ही महत्त्व हैं। ग़ज़लें जीवन के हर पहलू को स्पर्श करती आई है। चाहे वो ख़ुशी हो या ग़म, प्यार हो या शिकवा गिला, यारी हो या दुश्मनी, जीवन के हर भाव को अपने शब्दों में बयाँ करती है ग़ज़लें। यहाँ उर्दु तथा हिन्दी के कुछ जाने माने साहित्यकारों की रचनाओं को आप तक पहुँचाने कि एक कोशिश करना चाह रहा हूँ। आशा है आप इसे बढ़ाने में अपनी राय एवं अपना योगदान ज़रूर देंगे।
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हम तो बचपन में भी अकेले थे
हम तो बचपन में भी अकेले थे
सिर्फ़ दिल की गली में खेले थे
एक तरफ़ मोर्चे थे पलकों के
एक तरफ़ आंसूओं के रेले थे
थी सजी हसरतें दूकानों पर
ज़िंदगी के अजीब मेले थे
आज ज़हनों दिल भुखे मरते हैं
उन दिनों फ़ाके भी हम ने झेले हैं
खुदकशी क्या ग़मों हल बनती
मौत के अपने भी सौ झमेले हैं
जावेद अख्तर
सिर्फ़ दिल की गली में खेले थे
एक तरफ़ मोर्चे थे पलकों के
एक तरफ़ आंसूओं के रेले थे
थी सजी हसरतें दूकानों पर
ज़िंदगी के अजीब मेले थे
आज ज़हनों दिल भुखे मरते हैं
उन दिनों फ़ाके भी हम ने झेले हैं
खुदकशी क्या ग़मों हल बनती
मौत के अपने भी सौ झमेले हैं
जावेद अख्तर
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