आहट सी कोई आए तो लगता है कि तुम हो

आहट सी कोई आए तो लगता है कि तुम हो
साया कोई लहराए तो लगता है कि तुम हो।

जब शाख़ कोई हाथ लगाते ही चमन में
शरमाए लचक जाए तो लगता है कि तुम हो।

संदल से महकती हुई पुर-कैफ़ हवा का
झोंका कोई टकराए तो लगता है कि तुम हो।

ओढ़े हुए तारों की चमकती हुई चादर
नदी कोई बल खाए तो लगता है कि तुम हो।

जब रात गए कोई किरन मेरे बराबर
चुप-चाप सी सो जाए तो लगता है कि तुम हो।

- जाँ निसार अख़्तर

6 comments:

dinesh kumar said...

वहा वहा क्या बात है बहुत खूब ग़ज़ल :)

dinesh kumar said...

वहा वहा क्या बात है बहुत खूब ग़ज़ल :)

Unknown said...

plz read my blog for gajal
http://ravisinghthakur88.blogspot.in/
http://ravisinghthakur88.blogspot.in/
ठाकुर वेदमणी सिंह बेदम की गजलें

आशु said...

"आहट सी कोई आए तो लगता है कि तुम हो" बहुत खूब ग़ज़ल..

Baldau Ram sahu said...

खूबसूरत सुी ग़ज़ल है.

कविता रावत said...

बहुत खूबसूरत गजल है निसार जी की