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हर तरफ़ अपने को बिखरा पाओगे

हर तरफ़ अपने को बिखरा पाओगे,
आईनों को तोड के पछताओगे।

जब बदी के फूल महकेंगे यहाँ,
नेकियों पर अपने तुम शरमाओगे।

सच को पहले लफ़्ज फिर लब देंगे हम,
तुम हमेशा झूठ को झूठलाओगे।

सारी सिमते बेकशिश हो जायेगी,
घूम फिर के फिर यही आ जाओगे।

रूह की दीवार के गिरने के बाद,
बे बदन हो जाओगे, मर जाओगे।

शहरयार।

ज़िन्दगी जैसी तमन्ना थी नहीं कुछ कम है

ज़िन्दगी जैसी तमन्ना थी नहीं कुछ कम है
हर घड़ी होता है एहसास कहीं कुछ कम है

घर की तामीर तसव्वुर ही में हो सकती है
अपने नक़्शे के मुताबिक़ ये ज़मीं कुछ कम है

बिछड़े लोगों से मुलाक़ात कभी फिर होगी
दिल में उम्मीद तो काफ़ी है यक़ीं कुछ कम है

अब जिधर देखिये लगता है कि इस दुनिया में
कहीं कुछ चीज़ ज़ियादा है कहीं कुछ कम है

आज भी है तेरी दूरी ही उदासी का सबब
ये अलग बात कि पहली सी नहीं कुछ कम है

शहरयार

कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता

कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
कहीं ज़मीं तो कहीं आसमाँ नहीं मिलता

जिसे भी देखिये वो अपने आप में गुम है
ज़ुबाँ मिली है मगर हमज़ुबाँ नहीं मिलता

बुझा सका है भला कौन वक़्त के शोले
ये ऐसी आग है जिस में धुआँ नहीं मिलता

तेरे जहान में ऐसा नहीं कि प्यार न हो
जहाँ उम्मीद हो इस की वहाँ नहीं मिलता

शहरयार