ज़िन्दगी जैसी तमन्ना थी नहीं कुछ कम है
हर घड़ी होता है एहसास कहीं कुछ कम है
घर की तामीर तसव्वुर ही में हो सकती है
अपने नक़्शे के मुताबिक़ ये ज़मीं कुछ कम है
बिछड़े लोगों से मुलाक़ात कभी फिर होगी
दिल में उम्मीद तो काफ़ी है यक़ीं कुछ कम है
अब जिधर देखिये लगता है कि इस दुनिया में
कहीं कुछ चीज़ ज़ियादा है कहीं कुछ कम है
आज भी है तेरी दूरी ही उदासी का सबब
ये अलग बात कि पहली सी नहीं कुछ कम है
शहरयार
5 comments:
Got to read Shaharayar after many days. It's nice, mostly अपने नक़्शे के मुताबिक़ ये ज़मीं कुछ कम है
~Ganesh
I read, it's very nice. Ek sher hai इक कदम क्या जिन्दगीका गलत पड़ गया, तमाम उम्र मंजिल को तलाशता रहा ! Apka "Ashim"
कैलाश जी,
सब से पहले तो आप मेरी तरफ से इतनी अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई सवीकार करे। बहुत कम लोग इस को समझ पाते है। Shaharayar ने अपने ख्यालों को शब्दों का बहुत अच्छा रूप दिया है। कभी मेरे ब्लॉग पर ज़रूर आये
आशु
http://dayinsiliconvalley।blogspot.com/
अपने ख्यालों को शब्दों का बहुत अच्छा रूप दिया है। कभी मेरे ब्लॉग पर ज़रूर आये
आशु
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
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