अब तो ये भी नहीं रहा एहसास
दर्द होता है या नहीं होता ।
इश्क़ जब तक न कर चुके रुस्वा
आदमी काम का नहीं होता ।
टूट पड़ता है दफ़अतन जो इश्क़
बेश-तर देर-पा नहीं होता ।
वो भी होता है एक वक़्त कि जब
मा-सिवा मा-सिवा नहीं होता ।
दिल हमारा है या तुम्हारा है
हम से ये फ़ैसला नहीं होता ।
जिस पे तेरी नज़र नहीं होती
उस की ज़ानिब ख़ुदा नहीं होता ।
मैं कि बे-ज़ार उम्र के लिए
दिल कि दम-भर जुदा नहीं होता ।
वो हमारे क़रीब होते हैं
जब हमारा पता नहीं होता ।
दिल को क्या क्या सुकून होता है
जब कोई आसरा नहीं होता ।
हो के इक बार सामना उन से
फिर कभी सामना नहीं होता ।
-जिगर मुरादाबादी
1 comment:
वो भी होता है एक वक़्त कि जब
मा-सिवा मा-सिवा नहीं होता ..
लाजवाब शेर है ... माँ के सिवा कभी भी कुछ नहीं होता ...
होली कि हार्दिक बधाई ...
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