तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो
क्या ग़म है जिस को छुपा रहे हो
आँखों में नमी हँसी लबों पर
क्या हाल है क्या दिखा रहे हो
बन जायेंगे ज़हर पीते पीते
ये अश्क जो पीते जा रहे हो
जिन ज़ख़्मों को वक़्त भर चला है
तुम क्यों उन्हें छेड़े जा रहे हो
रेखाओं का खेल है मुक़द्दर
रेखाओं से मात खा रहे हो
कैफ़ी आज़मी
उर्दु साहित्य में ग़ज़लों का अपना एक अलग ही महत्त्व हैं। ग़ज़लें जीवन के हर पहलू को स्पर्श करती आई है। चाहे वो ख़ुशी हो या ग़म, प्यार हो या शिकवा गिला, यारी हो या दुश्मनी, जीवन के हर भाव को अपने शब्दों में बयाँ करती है ग़ज़लें। यहाँ उर्दु तथा हिन्दी के कुछ जाने माने साहित्यकारों की रचनाओं को आप तक पहुँचाने कि एक कोशिश करना चाह रहा हूँ। आशा है आप इसे बढ़ाने में अपनी राय एवं अपना योगदान ज़रूर देंगे।
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पत्थर के ख़ुदा वहां भी पाये
पत्थर के ख़ुदा वहां भी पाये
हम चांद से आज लौट आये
दिवारें तो हर तरफ खडी हैं
क्या हो गया मेहरबां साये
जंगल की हवायें आ रही हैं
कागज़ का ये शहर उड ना जाये
सहरा सहरा लहू के खेमे
फिर प्यासे लब-ए-फ़ुरात आये.
क़ैफ़ी आज़मी
हम चांद से आज लौट आये
दिवारें तो हर तरफ खडी हैं
क्या हो गया मेहरबां साये
जंगल की हवायें आ रही हैं
कागज़ का ये शहर उड ना जाये
सहरा सहरा लहू के खेमे
फिर प्यासे लब-ए-फ़ुरात आये.
क़ैफ़ी आज़मी
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