तुम सरे आम

तुम सरे आम मुलाकात से डरते क्यो हो
इश्क करते हो तो हालात से डरते क्यो हो

ये बताओ तो जरा मेरा खयाल आते ही
दिन से घबराते हो तुम रात से डरते क्यो हो

तुम तो कहते हो तुम्हे मुझसे मोहब्बत ही नही
फिर जुदाई के खयालात से डरते क्यो हो

मुझसे खुद आके लिपट जाना संभलकर हटना
तेज होती हुई बरसात से डरते क्यो हो

जमीर काजमी.

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