दुनिया जिसे कहते हैं

दुनिया जिसे कहते हैं जादू का ख़िलौना हैं
मिल जाये तो मिट्टी हैं खो जाये तो सोना है

अच्छा सा कोई मौसम तनहा सा कोई आलम
हर वक़्त आये रोना तो बेकार का रोना हैं

बरसात का बादल तो दिवाना हैं क्या जाने
किस राह से बचना हैं किस छत को भिगौना हैं

ग़म हो कि ख़ुशी दोनो कुछ देर के साथी हैं
फिर रास्ता ही रास्ता हैं हंसना हैं रोना हैं
निदा फ़ाज़ली

2 comments:

Shuaib said...

गज़ल अच्छी है

विनोद सुरडकार said...

hamen aapaki blog ki shayari hamare computer pe nahi dikhata kya kare