उर्दु साहित्य में ग़ज़लों का अपना एक अलग ही महत्त्व हैं। ग़ज़लें जीवन के हर पहलू को स्पर्श करती आई है। चाहे वो ख़ुशी हो या ग़म, प्यार हो या शिकवा गिला, यारी हो या दुश्मनी, जीवन के हर भाव को अपने शब्दों में बयाँ करती है ग़ज़लें। यहाँ उर्दु तथा हिन्दी के कुछ जाने माने साहित्यकारों की रचनाओं को आप तक पहुँचाने कि एक कोशिश करना चाह रहा हूँ। आशा है आप इसे बढ़ाने में अपनी राय एवं अपना योगदान ज़रूर देंगे।
जब लगे ज़ख़्म तो क़ातिल को दुआ दी जाये
जब लगे ज़ख़्म तो क़ातिल को दुआ दी जाये
है यही रस्म तो ये रस्म उठा दी जाये|
तिश्नगी कुछ तो बुझे तिश्नालब-ए-ग़म की
इक नदी दर्द के शहरों में बहा दी जाये|
हम ने इंसानों के दुख दर्द का हल ढूँढ लिया
क्या बुरा है जो ये अफ़वाह उड़ा दी जाये|
हम को गुज़री हुई सदियाँ तो न पहचानेंगी
आने वाले किसी लम्हे को सदा दी जाये|
फूल बन जाती हैं दहके हुए शोलों की लवें
शर्त ये है के उन्हें ख़ूब हवा दी जाये|
कम नहीं नशे में जाड़े की गुलाबी रातें
और अगर तेरी जवानी भी मिला दी जाये|
हम से पूछो ग़ज़ल क्या है ग़ज़ल का फ़न क्या है
चन्द लफ़्ज़ों में कोई आह छुपा दी जाये|
जाँ निसार अख़्तर
लेबल:
क़ातिल,
ग़ज़ल,
जाँ निसार अख़्तर
उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूँ
उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूँ
ढूँढने उस को चला हूँ जिसे पा भी न सकूँ
डाल कर ख़ाक मेरे ख़ून पे क़ातिल ने कहा
कुछ ये मेहंदी नहीं मेरी के मिटा भी न सकूँ
ज़ब्त कमबख़्त ने और आ के गला घोंटा है
के उसे हाल सुनाऊँ तो सुना भी न सकूँ
उस के पहलू में जो ले जा के सुला दूँ दिल को
नींद ऐसी उसे आए के जगा भी न सकूँ
नक्श-ऐ-पा देख तो लूँ लाख करूँगा सजदे
सर मेरा अर्श नहीं है कि झुका भी न सकूँ
बेवफ़ा लिखते हैं वो अपनी कलम से मुझ को
ये वो किस्मत का लिखा है जो मिटा भी न सकूँ
इस तरह सोये हैं सर रख के मेरे जानों पर
अपनी सोई हुई किस्मत को जगा भी न सकूँ
अमीर मीनाई
शब्दार्थ:
हसरत-इच्छा
ज़ब्त-सहनशीलता
पहलू-गोद
अर्श-आसमान
ढूँढने उस को चला हूँ जिसे पा भी न सकूँ
डाल कर ख़ाक मेरे ख़ून पे क़ातिल ने कहा
कुछ ये मेहंदी नहीं मेरी के मिटा भी न सकूँ
ज़ब्त कमबख़्त ने और आ के गला घोंटा है
के उसे हाल सुनाऊँ तो सुना भी न सकूँ
उस के पहलू में जो ले जा के सुला दूँ दिल को
नींद ऐसी उसे आए के जगा भी न सकूँ
नक्श-ऐ-पा देख तो लूँ लाख करूँगा सजदे
सर मेरा अर्श नहीं है कि झुका भी न सकूँ
बेवफ़ा लिखते हैं वो अपनी कलम से मुझ को
ये वो किस्मत का लिखा है जो मिटा भी न सकूँ
इस तरह सोये हैं सर रख के मेरे जानों पर
अपनी सोई हुई किस्मत को जगा भी न सकूँ
अमीर मीनाई
शब्दार्थ:
हसरत-इच्छा
ज़ब्त-सहनशीलता
पहलू-गोद
अर्श-आसमान
हम उन्हें वो हमें भुला बैठे
हम उन्हें वो हमें
भुला बैठे
दो गुनहगार ज़हर खा बैठे|
हाल-ऐ-ग़म कह-कह के ग़म बढ़ा बैठे
तीर मारे थे तीर खा बैठे|
आंधियो जाओ अब आराम करो
हम ख़ुद अपना दिया बुझा बैठे|
जी तो हल्का हुआ मगर यारो
रो के हम लुत्फ़-ऐ-गम बढ़ा बैठे|
बेसहारों का हौसला ही क्या
घर में घबराए दर पे आ बैठे|
जब से बिछड़े वो मुस्कुराए न हम
सब ने छेड़ा तो लब हिला बैठे|
उठ के इक बेवफ़ा ने दे दी जान
रह गए सारे बावफ़ा बैठे|
हश्र का दिन है अभी दूर 'ख़ुमार'
आप क्यों जाहिदों में जा बैठे|
दो गुनहगार ज़हर खा बैठे|
हाल-ऐ-ग़म कह-कह के ग़म बढ़ा बैठे
तीर मारे थे तीर खा बैठे|
आंधियो जाओ अब आराम करो
हम ख़ुद अपना दिया बुझा बैठे|
जी तो हल्का हुआ मगर यारो
रो के हम लुत्फ़-ऐ-गम बढ़ा बैठे|
बेसहारों का हौसला ही क्या
घर में घबराए दर पे आ बैठे|
जब से बिछड़े वो मुस्कुराए न हम
सब ने छेड़ा तो लब हिला बैठे|
उठ के इक बेवफ़ा ने दे दी जान
रह गए सारे बावफ़ा बैठे|
हश्र का दिन है अभी दूर 'ख़ुमार'
आप क्यों जाहिदों में जा बैठे|
ख़ुमार बाराबंकवी
हर तरफ़ अपने को बिखरा पाओगे
हर तरफ़ अपने को बिखरा पाओगे,
आईनों को तोड के पछताओगे।
जब बदी के फूल महकेंगे यहाँ,
नेकियों पर अपने तुम शरमाओगे।
सच को पहले लफ़्ज फिर लब देंगे हम,
तुम हमेशा झूठ को झूठलाओगे।
सारी सिमते बेकशिश हो जायेगी,
घूम फिर के फिर यही आ जाओगे।
रूह की दीवार के गिरने के बाद,
बे बदन हो जाओगे, मर जाओगे।
शहरयार।
मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला
मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला
अगर गले नही मिलता तो हाथ भी न मिला
घरों पे नाम थे, नाम के साथ ओहदे थे
बहुत तलाश किया, कोई आदमी न मिला
तमाम रिश्तों को घर पे छोड आया था
फ़िर उसके बाद मुझे कोई अजनबी न मिला
बहुत अजीब है ये गुरबतों की दूरी भी
वो मेरे साथ रहा और मुझे कभी न मिला
बशीर बद्र
अगर गले नही मिलता तो हाथ भी न मिला
घरों पे नाम थे, नाम के साथ ओहदे थे
बहुत तलाश किया, कोई आदमी न मिला
तमाम रिश्तों को घर पे छोड आया था
फ़िर उसके बाद मुझे कोई अजनबी न मिला
बहुत अजीब है ये गुरबतों की दूरी भी
वो मेरे साथ रहा और मुझे कभी न मिला
बशीर बद्र
काश! ऐसा कोई मंज़र होता
काश ऐसा कोई मंज़र होता
मेरे कांधे पे तेरा सर होता
जमा करता जो मैं आये हुये संग
सर छुपाने के लिये घर होता
इस बुलंदी पे बहुत तनहा हू
काश मैं सबके बराबर होता
उस ने उलझा दिया दुनिया में मुझे
वरना इक और क़लंदर होता
ताहिर फ़राज़
मेरे कांधे पे तेरा सर होता
जमा करता जो मैं आये हुये संग
सर छुपाने के लिये घर होता
इस बुलंदी पे बहुत तनहा हू
काश मैं सबके बराबर होता
उस ने उलझा दिया दुनिया में मुझे
वरना इक और क़लंदर होता
ताहिर फ़राज़
हर एक रूह में
हर एक रूह में एक ग़म छुपा लगे है मुझे
ये जिंदगी तो कोई बददुआ लगे है मुझे
न जाने वक़्त की रफ़्तार क्या दिखाती है?
कभी कभी तो बडा ख़ौफ़ सा लगे है मुझे
अब एक-आध कदम का हिसाब क्या रखे?
अभी तलक तो वही फ़ासला लगे है मुझ
दबाके आई है सिने में कौन सी आहें
कुछ आज रंग तेरा सांवला लगे है मुझे
जाँ निसार अख़्तर
ये जिंदगी तो कोई बददुआ लगे है मुझे
न जाने वक़्त की रफ़्तार क्या दिखाती है?
कभी कभी तो बडा ख़ौफ़ सा लगे है मुझे
अब एक-आध कदम का हिसाब क्या रखे?
अभी तलक तो वही फ़ासला लगे है मुझ
दबाके आई है सिने में कौन सी आहें
कुछ आज रंग तेरा सांवला लगे है मुझे
जाँ निसार अख़्तर
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