ज़िंदगी तूने लहू लेके दिया कुछ भी नहीं
तेरे दामन में मेरे वास्ते क्या कुछ भी नहीं
मेरे इन हाथों की चाहो तो तलाशी ले लो
मेरे हाथों में लकीरों के सिवा कुछ भी नहीं
हमने देखा है कई ऐसे ख़ुदाओं को यहां
सामने जीन के वो सच मुच का खुदा कुछ भी नहीं
या ख़ुदा अब के ये किस रंग से आई है बहार
जर्द ही ज़र्द है पेडों पे हरा कुछ भी नहीं
दिल भी इक जिद पे अडा है किसी बच्चे की तरह
या तो सब कुछ ही इसे चाहिये या कुछ भी नहीं
राजेश रेड्डी.
1 comment:
Hi, I read your blog. I expect some more names here, Iqbal, Faiz, Kazmi, Ghalib, etc.
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