राक्षस था, न खुदा था पहले
आदमी कितना बडा था पहले
आस्मां, खेत, समुंदर सब लाल
खून कागज पे उगा था पहले
मैं वो मक्तूल, जो कातिल ना बना
हाथ मेरा भी उठा था पहले
अब किसी से भी शिकायत न रही
जाने किस किस से गिला था पहले
शहर तो बाद में वीरान हुआ
मेरा घर खाक हुआ था पहले
निदा फ़ाज़ली.
1 comment:
अब किसी से भी शिकायत न रही
जाने किस किस से गिला था पहले
बहुत खूब लिखा है इन पंक्तियों में
कभी हमारी गलियों में भी आना
जाने कभी मुलाकात हुई होगी हमसे
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