आहट सी कोई आए तो लगता है कि तुम हो

आहट सी कोई आए तो लगता है कि तुम हो
साया कोई लहराए तो लगता है कि तुम हो।

जब शाख़ कोई हाथ लगाते ही चमन में
शरमाए लचक जाए तो लगता है कि तुम हो।

संदल से महकती हुई पुर-कैफ़ हवा का
झोंका कोई टकराए तो लगता है कि तुम हो।

ओढ़े हुए तारों की चमकती हुई चादर
नदी कोई बल खाए तो लगता है कि तुम हो।

जब रात गए कोई किरन मेरे बराबर
चुप-चाप सी सो जाए तो लगता है कि तुम हो।

- जाँ निसार अख़्तर

अब तो ये भी नहीं रहा एहसास

अब तो ये भी नहीं रहा एहसास
दर्द होता है या नहीं होता ।

इश्क़ जब तक न कर चुके रुस्वा
आदमी काम का नहीं होता ।

टूट पड़ता है दफ़अतन जो इश्क़
बेश-तर देर-पा नहीं होता ।

वो भी होता है एक वक़्त कि जब
मा-सिवा मा-सिवा नहीं होता ।

दिल हमारा है या तुम्हारा है
हम से ये फ़ैसला नहीं होता ।

जिस पे तेरी नज़र नहीं होती
उस की ज़ानिब ख़ुदा नहीं होता ।

मैं कि बे-ज़ार उम्र के लिए
दिल कि दम-भर जुदा नहीं होता ।

वो हमारे क़रीब होते हैं
जब हमारा पता नहीं होता ।

दिल को क्या क्या सुकून होता है
जब कोई आसरा नहीं होता ।

हो के इक बार सामना उन से
फिर कभी सामना नहीं होता ।

-जिगर मुरादाबादी