हर तरफ़ अपने को बिखरा पाओगे

हर तरफ़ अपने को बिखरा पाओगे,
आईनों को तोड के पछताओगे।

जब बदी के फूल महकेंगे यहाँ,
नेकियों पर अपने तुम शरमाओगे।

सच को पहले लफ़्ज फिर लब देंगे हम,
तुम हमेशा झूठ को झूठलाओगे।

सारी सिमते बेकशिश हो जायेगी,
घूम फिर के फिर यही आ जाओगे।

रूह की दीवार के गिरने के बाद,
बे बदन हो जाओगे, मर जाओगे।

शहरयार।

मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला

मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला
अगर गले नही मिलता तो हाथ भी न मिला

घरों पे नाम थे, नाम के साथ ओहदे थे
बहुत तलाश किया, कोई आदमी न मिला

तमाम रिश्तों को घर पे छोड आया था
फ़िर उसके बाद मुझे कोई अजनबी न मिला

बहुत अजीब है ये गुरबतों की दूरी भी
वो मेरे साथ रहा और मुझे कभी न मिला

बशीर बद्र

काश! ऐसा कोई मंज़र होता

काश ऐसा कोई मंज़र होता
मेरे कांधे पे तेरा सर होता

जमा करता जो मैं आये हुये संग
सर छुपाने के लिये घर होता

इस बुलंदी पे बहुत तनहा हू
काश मैं सबके बराबर होता

उस ने उलझा दिया दुनिया में मुझे
वरना इक और क़लंदर होता

ताहिर फ़राज़

हर एक रूह में

हर एक रूह में एक ग़म छुपा लगे है मुझे
ये जिंदगी तो कोई बददुआ लगे है मुझे

न जाने वक़्त की रफ़्तार क्या दिखाती है?
कभी कभी तो बडा ख़ौफ़ सा लगे है मुझे

अब एक-आध कदम का हिसाब क्या रखे?
अभी तलक तो वही फ़ासला लगे है मुझ

दबाके आई है सिने में कौन सी आहें
कुछ आज रंग तेरा सांवला लगे है मुझे



जाँ निसार अख़्तर