दुनिया जिसे कहते हैं

दुनिया जिसे कहते हैं जादू का ख़िलौना हैं
मिल जाये तो मिट्टी हैं खो जाये तो सोना है

अच्छा सा कोई मौसम तनहा सा कोई आलम
हर वक़्त आये रोना तो बेकार का रोना हैं

बरसात का बादल तो दिवाना हैं क्या जाने
किस राह से बचना हैं किस छत को भिगौना हैं

ग़म हो कि ख़ुशी दोनो कुछ देर के साथी हैं
फिर रास्ता ही रास्ता हैं हंसना हैं रोना हैं
निदा फ़ाज़ली

दिन कुछ ऐसे गुजारता हैं कोई

दिन कुछ ऐसे गुजारता हैं कोई
जैसे एहसान उतारता है कोई

दिल में कुछ यूं संभालता हैं ग़म
जैसे जेवर संभालता हैं कोई

आईना देखकर तसल्ली हुई
हम को इस घर में पहचानता हैं कोई

दूर से गुंजते हैं सन्नाटे
जैसे हम को पुकारता है कोई
गुलज़ार

बदला ना अपने आपको

बदला ना अपने आपको जो थे वही रहे
मिलते रहे सभी से मगर अज़नबी रहे

दुनिया ना जीत पाओ तो हारो ना ख़ुद को तुम
थोडी बहुत तो ज़हान में नाराज़गी रहे

अपनी तरहा सभी को किसी की तलाश थी
हम जिसके भी क़रीब रहे दूर ही रहे

गुज़रो जो बाग़ से तो दुआ मांगते चलो
जिसमें खिले है फूल वो डाली हरी रहे
निदा फ़ाज़ली

कल चौदवी की रात थी

कल चौदवी की रात थी शब भर रहा चर्चा तेरा
कुछ ने कहा ये चांद है कुछ ने कहा चेहरा तेरा

हम भी वही मौजुद थे हम से भी सब पूछा किये
हम हंस दिये, हम चुप रहे,मंजूर था पर्दा तेरा

इस शहर में किससे मिले, हम से तो छूटी महफ़िले
हर शख्स तेरा नाम ले,हर शख्स दिवाना तेरा

कुचे को तेरे छोडकर जोगी ही बन जाये मगर
ज़ंगल तेरे, परबत तेरे,बस्ती तेरी,चेहरा तेरा

बेदर्द सुनी हो तो चल, कहता है क्या अच्छी गज़ल
आशिक़ तेरा, रूसवा तेरा,शायर तेरा,इंशा तेरा
इब्ने इंशा .

दुनिया के हादसों से तुने मुझे बचा के

दुनिया के हादसों से तुने मुझे बचा के
बेमौत मार डाला एहसां जता जता के.

तेरा चमकते सूरज एहसान मैं न लूंगा
कर लूंगा मैं उजाला खुद अपना घर जला के.

मैं टूट भी गया तो मुझमें चमक रहेगी
आईना पत्थरों से कहता है मुस्कुरा के.

तुझसे बिछड के आलम में हम जी नही सकेंगे
देखो दगा ना देना अपना मुझे बना के.

गम का खज़ाना तेरा भी है, मेरा भी

गम का खज़ाना तेरा भी है, मेरा भी
ये नज़राना तेरा भी है, मेरा भी

अपने गम को गीत बनाकर गा लेना
राग पुराना तेरा भी है, मेरा भी

शहर में गलीयों गलीयों जिसका चर्चा है
वो अफ़साना तेरा भी है, मेरा भी

तू मुझको और मैं तुझको समझाये क्या
दिल दिवाना तेरा भी है, मेरा भी

मैखाने की बात न कर मुझसे वाईज़
आना जाना तेरा भी है, मेरा भी

शाहिद कबीर.

तेरा चेहरा कितना सुहाना लगता हैं

तेरा चेहरा कितना सुहाना लगता हैं
तेरे आगे चांद पुराना लगता हैं

तिरछे तिरछे तीर नजर के चलते हैं
सीधा सीधा दिल पे निशाना लगता हैं

आग का क्या हैं पल दो पल में लगती हैं
बुझते बुझते एक ज़माना लगता हैं

सच तो ये हैं फूल का दिल भी छल्ली हैं
हसता चेहरा एक बहाना लगता हैं

कैफ़ भोपाली

दिल के दीवारों दर पे

दिल के दीवारों दर पे क्या देखा
बस तेरा नाम ही लिखा देखा

तेरी आखों में हमने क्या देखा
कभी कातिल कभी खुदा देखा

अपनी सुरत लगी पराई सी
जब कभी हमने आईना देखा

हाय अंदाज तेरे रूकने का
वक्त को भी रूका रूका देखा

तेरे जाने में और आने में
हमने सदियों का फ़ासला देखा

फिर ना आया खयाल जन्नत का
जब तेरे घर का रास्ता देखा

सुदर्शन फ़ाकिर

मैं होश में था

मैं होश में था तो फिर उसपे मर गया कैसे
ये जहर मेरे लहू में उतर गया कैसे

कुछ उसके दिल में लगावट जरूर थी वरना
वो मेरा हाथ दबाकर गुजर गया कैसे

जरूर उसके तसव्वुर की राहत होगी
नशे में था तो मैं अपने ही घर गया कैसे

जिसे भुलाये कई साल हो गये कलीम
मैं आज उसकी गली से गुजर गया कैसे

कलीम कंधपुरी