कितनी पलकों की नमी मांगके लाई होगी

कितनी पलकों की नमी मांगके लाई होगी
प्यास तब फूल की शबनम ने बुझाई होगी

इक सितारा जो गिरा टूंट के उंचाई से
किसी जर्रे की हंसी उसने उडाई होगी

आंधिया हैं के मचलती है,चली आती है
किसी मुफ़लीस ने कही शम्मा जलाई होगी

मैनें कुछ तुमसे कहा हो तो जबां जल जाये
किसी दुश्मन ने ये अफ़वाह उडाई होगी

हम तो आहट के भरोसे पे सहर तक पहुंचे
रातभर आपको भी नींद ना आई होगी

जब कभी तेरा नाम लेते है

जब कभी तेरा नाम लेते है
दिल से हम इंतिकाम लेते है

मेरे बरबादियों के अफ़साने
मेरे यारों के नाम लेते है

बस यही एक जुल्म है अपना
हम मोहब्बत से काम लेते है

हर कदम पर गिरे मगर सिखा
कैसे गिरतों को थाम लेते है

हम भटककर जुनूं की राहों मे
अक्ल से इंतिकाम लेते है
सरदार अंजुम

पूरा दुख और आधा चांद

पूरा दुख और आधा चांद
हिज्र की शब और ऐसा चांद

इतने घने बादल के पीछे
कितना तनहा होगा चांद

मेरी करवट पर जाग उठे
नींद का कितना कच्चा चांद

सहरा सहरा भटक रहा है
अपने इश्क मे सच्चा चांद

रात के शायद एक बजे है
सोता होगा मेरा चांद

परवीन शाकिर

जिंदगी से बडी सजा ही नहीं

जिंदगी से बडी सजा ही नहीं
और क्या जुल्म है पता ही नहीं

इतने हिस्सों में बंट गया हूं मैं
मेरे हिस्से में कुछ बचा ही नहीं

सच घटे या बढे तो सच ना रहे
झूठ की तो कोई इम्तिहां ही नहीं

जड दो चांदी में चाहे सोने में
आईना झूठ बोलता ही नहीं

कृष्णबिहारी नूर.

झूम ले हस बोल ले

झूम ले हस बोल ले प्यारी अगर है जिंदगी
सांस के बस एक झोके का सफ़र है जिंदगी

देर ही बनते बिगडते कुछ इसे लगती नही
फूल के दिवार पर शबनम का घर है जिंदगी

अजनबी हालात से भी हंसके मिलना चाहिये
हर कदम पर मुडने वाली रहगुजर है जिंदगी

जिंदगी मे जो भी करना चाहता है कर गुजर
क्या खबर बरसो की है या लम्हाभर है जिंदगी

तुम सरे आम

तुम सरे आम मुलाकात से डरते क्यो हो
इश्क करते हो तो हालात से डरते क्यो हो

ये बताओ तो जरा मेरा खयाल आते ही
दिन से घबराते हो तुम रात से डरते क्यो हो

तुम तो कहते हो तुम्हे मुझसे मोहब्बत ही नही
फिर जुदाई के खयालात से डरते क्यो हो

मुझसे खुद आके लिपट जाना संभलकर हटना
तेज होती हुई बरसात से डरते क्यो हो

जमीर काजमी.

कोई पत्ता हिले

कोई पत्ता हिले हवा तो चले
कौन अपना है ये पता तो

चले तू सितम से न हाथ अभी
और कुछ दिन ये सिलसिला तो चले

मंजिले खुद करीब आयेंगी
ये अजिजानो का काफ़िला तो चले

शहर हो गाव हो या हो घर अपना
आबुदाना ही उठ गया तो चले

हर किसी से मिला करो ए जफ़र
कौन कैसा है कुछ पता तो चले

जफ़र अली.

घर से निकले

घर से निकले थे हौसला करके
लौट आये खुदा खुदा करके

दर्द दिलका लगे वफ़ा करके
हमने देखा है तजुरबा करके

जिंदगी तो कभी नही आई
मौत आई जरा जरा करके

लोग सुनते रहे दिवार की बात
हम चले दिल को रहरूमा करके

किसने पाया सुकून दुनिया मे
जिन्दगानी का सामना करके

राजेश रेड्डी.

गजल की दुनिया में

मुस्कुराकर मिला करो हमसे
कुछ कहा और सुना करो हमसे

बात करने से बात बढती है
रोज बाते किया करो हमसे

दुश्मनी से मिलेगा क्या तुमको
दोस्त बनकर रहा करो हमसे